
Abhishek Chourasia
चित्रकला के बहुआयाम
सृजन और कल्पना एक ही सिक्के के दो पहलू है, कल्पना का विस्तार ही, सृजन को जन्म देता है| कल्पना का क्षेत्र असीम है, इसलिए सृजन भी उत्कृष्ट हो सकता है| कहने का आशय सृजन हेतु कल्पना अनिवार्य है, किन्तु आधुनिक युग में मनुष्य की कल्पना शक्ति दुर्बल होती जा रही है| जिसकारण सृजन विकृत तथा विध्वंसक होता जा रहा है, और इस विध्वंसन तथा विकृती को नियंत्रत करने हेतु चित्रकला एक अहम भूमिका निभा सकती है| एक चित्र का जब सृजन किया जाता है, उसमे एक सशक्त सन्देश होता है| समाज में जाग्रता करने हेतु इसी कारण से भारत सरकार विज्ञानपट्ट के द्वारा पर्यावरण पर चित्रकला के माध्यम से समाज का ध्यान आकर्षित करने हेतु तत्पर है|

मानव समाज में कल्पना शक्ति तथा सृजन को सक्रिय बनाने हेतु सर्वप्रथम आवश्यक है, की विद्यालयों में विद्यार्थियों को कनिष्ठ कक्षा से ही चित्रकला सम्बंधित शिक्षा गंभीरता पूर्वक प्रदान की जाए| समाज के ज्वलंत विषयों पर विद्यार्थियों से चित्र बनवाए जाए| इससे न केवल इन विद्यार्थियों की कल्पना तथा सृजन शक्ति बलवान बनेगी अपितु विद्यार्थी संवेदनशील भी बनेगे| जो समाज में शांति अनुशासन तथा परस्पर बंधुत्व की भावनाओं को बल प्रदान करेगा|
भारतीय संस्कृति के अंतर्गत जितनी भी प्राचीन कलाएं आज जीवित है, वह सब स्वास्थ्य वर्धक है| आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का यह मानना है, की मनुष्य के रोग का मूल कारण मानसिक कारण है, और इस मानसिक तनाव से ही नाना प्रकार के मनोरोगो का जन्म होता है| भारतीय प्राचीन कलाएं मन को आनंद प्रदान करती है, और जब मन आनंदित रहता है, तो रुग्ण देह में भी परम स्वास्थ्य की अनुभूति होती है, एतदर्थ चित्रकला चिकित्सा न होते हुए भी चिकित्सा का कार्य कर सकती है| जब कोई चित्रकला कल्पना की भूमि पर खड़ा होकर सृजन के ध्यान में डूबकर किसी चित्र को जन्म देता रहता है, उस समय वह देह और मन से परे है, और सृजन कार्य पूर्ण करते ही उसे परमानन्द की पूर्ति होती है| उसका यह सर्जनात्मक कार्य औरो को भी आनंद प्रदान करता है|
इसलिए वर्तमान समय में यदि हम विश्वस्तर पर शांति अनुशासन एवम मानवीय गुणों के विकास की कामना करते है, तो हमे चित्रकला जैसी दिव्य विधा को प्रधानता देनी होगी| आवश्यकता है कि चित्रकला विद्या का अधिक मात्रा में निःशुल्क अथवा निम्म शुल्क में प्रचार एवं प्रसार किया जाए, जिसके अंतर्गत चित्राकला के सत्र आयोजित किये जाए, चित्रकला के महत्व को प्रकट करते हुए लेख लिखे जाए परिचर्चा आयोजित की जाए|